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भगोरिया

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  • के दौरान मनाया जाता है: March
  • महत्व:

    पश्चिमी निमाड़,झाबुआ और आलीराजपुर में देश-विदेश में प्रसिद्ध लोक संस्कृति का पर्व भगोरिया बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है। हाेली के 7 दिन पहले से मनाए जाने वाले इस पर्व में आदिवासी अंचल उत्सव की खुमारी में डूबा रहता है ।होली के पहले भगोरिया के सात दिन ग्रामीण खुलकर अपनी जिंदगी जीते हैं। देश के किसी भी कोने में ग्रामीण आदिवासी मजदूरी करने गया हो लेकिन भगोरिया के वक्त वह अपने घर लौट आता है। इस दौरान रोजाना लगने वाले मेलों में वह अपने परिवार के साथ सम्मिलित होता है। भगोरिया की तैयारियां आदिवासी महीनेभर पहले से ही शुरू कर देते हैं। दिवाली के समय तो शहरी लोग ही शगुन के बतौर सोने-चांदी के जेवरात व अन्य सामान खरीदते हैं लेकिन भगोरिया के सात दिन ग्रामीण अपने मौज-शौक के लिए खरीदारी करते हैं। लिहाजा व्यापारियों को भगोरिया उत्सव का बेसब्री से इंतजार रहता है। ग्रामीण खरीदारी के दौरान मोलभाव नहीं करते, जिससे व्यापारियों को खासा मुनाफा होता है।

  • लोकप्रिय एडिबल्स : कचोरी
  • उत्सव के अवसर :

    ऐसी मान्यता है कि भगोरिया की शुरुआत राजा भोज के समय से हुई थी। उस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भगोर में मेले का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया, जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहने का चलन बन गया। हालांकि, इस बारे में लोग एकमत नहीं हैं।युवकों की अलग-अलग टोलियां सुबह से ही बांसुरी-ढोल-मांदल बजाते मेले में घूमते हैं। वहीं, आदिवासी लड़कियां हाथों में टैटू गुदवाती हैं। आदिवासी ताड़ी भी पीते हैं। हालांकि, वक्त के साथ मेले का रंग-ढंग बदल गया है। अब आदिवासी लड़के ट्रेडिशनल कपड़ों की बजाय मॉडर्न कपड़ों में ज्यादा नजर आते हैं। मेले में गुजरात और राजस्थान के ग्रामीण भी पहुंचते हैं।